घी-त्यार उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार

7
ghee-tyar-in-uttarakhand

ghee-tyar-in-uttarakhand

घी-त्यार- उत्तराखंड को देवो की भूमि के साथ साथ त्योहारों की भूमि भी कहा जाता है । आज ही के दिन उत्तराखंड में एक बड़ा त्योहार मनाया जाता है । हालांकि वक्त के साथ साथ हम सभी इसे लगभग भूलते जा रहे हैं लेकिन उत्तराखंड के अधिकतर गांवों में आज भी ये त्योहार बड़े धूम धाम के साथ मनाया जाता है।

घी-त्यार (ghee-tyar) का सीधा संबंध प्रकृति से है। भाद्रपद महीने की सक्रांति को ये त्योहार मनाया जाता है। ये मौसम पहाड़ में फसल पकने की ओर अग्रसर है। इस त्योहार को गढ़वाल में घिया संग्राद और कुमाऊं में घी त्यार कहते हैं।

क्यों और कब मनाया जाता है घी त्यार-

घी एक ऐसा तत्व है, जो शरीर में ऊर्जा का संचार करता है। स्मरण शक्ति को बढ़ाता है, बुद्धि, बल, ओजस्वी बनाता है। घी-त्यार उत्तराखण्ड का एक लोक उत्सव है। यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है।

ghee tyar in Uttarakhand
ghee tyar in Uttarakhand

हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं  घी-त्यार अंकुरित हो चुकी फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है। यह हिन्दी मास की प्रत्येक १ गते यानी संक्रान्ति को लोक पर्व के रूप में मनाने का प्रचलन रहा है। भाद्रपद मास की संक्रान्ति को भी यहां घी-त्यार के रूप में मनाया जाता है।

उत्तराखंड में “घी त्यार” का महत्व-

उत्तराखंड में घी त्यार किसानो के लिए अत्यंत महत्व रखता है | और आज ही के दिन उत्तराखंड में गढ़वाली , कुमाउनी सभ्यता के लोग घी को खाना जरुरी मानते है |

क्युकी घी को जरुरी खाना इसलिए माना जाता है क्युकी इसके पीछे एक डर भी छिपा हुआ है | वो डर है घनेल ( घोंगा )का | पहाड़ों में यह बात मानी जाती है कि जो घी संक्रांति के दिन जो व्यक्ति घी का सेवन नहीं करता वह अगले जन्म में घनेल (घोंघा) बनता है ।

ghee tyar in Uttarakhand
ghee tyar in Uttarakhand

इसलिए इसी दजह से है कि नवजात बच्चों के सिर और पांव के तलुवों में भी घी लगाया जाता है । यहां तक उसकी जीभ में थोड़ा सा घी रखा जाता है । इस दिन हर परिवार के सदस्य जरूर घी का सेवन करते है ।

जिसके घर में दुधारू पशु नहीं होते गांव वाले उनके यहां दूध और घी पहुंचाते हैं| बरसात में मौसम में पशुओं को खूब हरी घास मिलती है । जिससे की दूध में बढ़ोतरी होने से दही -मक्खन -घी की भी प्रचुर मात्रा मिलती है।

इस दिन का मुख्य व्यंजन बेड़ू की रोटी है। (जो उरद की दाल भिगो कर, पीस कर बनाई गई पिट्ठी से भरवाँ रोटी बनती है ) और घी में डुबोकर खाई जाती है। अरबी के बिना खिले पत्ते जिन्हें गाबा कहते हैं, उसकी सब्जी बनती है |

7 thoughts on “घी-त्यार उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *