मेरी माँ ( Very Emotional Inspirational Hindi Story )
विशाखा एक छोटे से शहर के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 5 की शिक्षिका थी। उनकी एक आदत थी जो हमेशा क्लास शुरू करने से पहले “I LOVE YOU ALL” कहती थी। लेकिन वह भी जानती थी कि वह सच नहीं कहती। वह कक्षा के सभी छात्रों से प्यार नहीं करती। कक्षा में एक बच्चा था, जो विशाखा को एक आँख नहीं भाता था। उसका नाम शेखर था। शेखर मैले कुचेले कपड़ो में ही स्कूल आ जाया करता था। उसके बाल खराब हुए होते , उसके जूते के फीते खुले हुए होते, शर्ट के कालर पर भी मैल होता साथ ही पढ़ाई के समय उसका ध्यान भी पढ़ाई पर नहीं होता।
विशाखा के डांटने पर वह उन्हें चौंक कर देखने तो लग जाता – लेकिन उसकी खाली खाली नज़रो से उन्हें साफ़ पता लग जाता था कि शेखर शारीरिक रूप से कक्षा में मौजूद होने के बाद भी वह मानसिक रूप से गायब है । धीरे-धीरे विशाखा शेखर से नफरत करने लगी। क्लास में घुसते ही शेखर विशाखा की आलोचना का निशाना बनने लगा । सभी बुरे उदाहरण शेखर के नाम पर किये जाते। बच्चे उस पर हँसते और विशाखा उसे अपमानित करके संतोष प्राप्त करती । शेखर ने कभी किसी बात का जवाब नहीं दिया था।
विशाखा को शेखर एक बेजान पत्थर की तरह लगता था , जिसके अंदर फीलिंग्स नाम की कोई चीज नहीं थी। हर डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में, शेखर बस उन्हें भावनाओं से भरी आंखों से देखा करता और सिर झुका लिया करता ।
विशाखा को अब उससे गंभीर रूप से चिढ़ हो चुकी थी। जब पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और रिपोर्ट बनाने का चरण आया, तो विशाखा ने शेखर की प्रगति रिपोर्ट में इन सभी खराब चीजों को लिखा।
प्रगति रिपोर्ट माता-पिता को दिखाने से पहले हेड मास्टर के पास जाती थी। जब उसने शेखर की रिपोर्ट देखी, तो उसने विशाखा को अपने पास बुलाया । और बोले “विशाखा प्रगति रिपोर्ट्स में कुछ अच्छा भी लिखा जाना चाहिए। शेखर के पिता इसे देख कर बहुत निराश होंगे । “मैं माफ़ी मांगना चाहती हु लेकिन शेखर एक बहुत ही असभ्य और बत्तमीज़ लड़का है” । मुझे नहीं लगता कि उसकी प्रगति रिपोर्ट में लिखने के लिए मेरे पास कुछ है ।”विशाखा घृणित स्वर में बोली और वहा से चली गयी।
अगले दिन हेड मास्टर ने एक अजीब काम किया । उन्होंने विशाखा की मेज पर शेखर के पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट को चपरासी के द्वारा भिजवाया । अगले दिन जब विशाखा ने कक्षा में प्रवेश किया, तो रिपोर्ट पर उसकी नज़र गयी । देखने पर पता चला कि यह तो शेखर की रिपोर्ट है। और सोचा “पिछली कक्षाओं में भीं उसने यही गुल खिलाये होंगे ।” उन्होंने कक्षा 3 की रिपोर्ट को उठाकर खोला। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट शेखर की तारीफों से भरी थी।
“मैंने शेखर जैसा कोई बुद्धिमान बच्चा नहीं देखा।” शेखर बहुत संवेदनशील बच्चा है और उसे अपने दोस्तों और शिक्षकों से बहुत प्यार है।”
शेखर ने अंतिम सेमेस्टर में भी पहला स्थान हासिल किया है। “विशाखा ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 में एक रिपोर्ट खोली।” तो उसमे लिखा था शेखर पर अपनी माँ की बीमारी का बहुत गहरा प्रभाव पढ़ रहा है । उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। “शेखर की माँ को अंतिम अवस्था का कैंसर हो गया है। घर पर उसकी ओर देखने वाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है। जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।”
शेखर की माँ मर चुकी है और इसके साथ ही शेखर के जीवन की रौनक भी । उसे बचाना होगा … इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
विशाखा का मन भयानक बोझ से भर गया था। कांपते हाथों से उसने प्रगति रिपोर्ट बंद कर दी। उनकी आँखों से एक के बाद एक आँसू गिरने लगे, अगले दिन जब विशाखा ने कक्षा में प्रवेश किया, तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश दोहराया “I LOVE YOU ALL”। लेकिन वह जानती थी कि वह अभी भी झूठ बोल रही है। क्युकी इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालो वाले बच्चे शेखर के लिए जो प्यार आज उसे दिख रहा था वह पूरी क्लास के किसी बच्चे की लिए नहीं था …
पढ़ाई के दौरान, उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह शेखर से सवाल किया , और हमेशा की तरह, शेखर ने अपना सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक विशाखा के डांट फटकार और सहपाठियो के हसने की आवाज़ उसके कानो में नहीं पड़ी तो उसने अचम्भे से सर उठाकर उनकी ओर देखा। अप्रत्याशित आज विशाखा के चेहरे पर गुस्सा नहीं था , वे मुस्कुरा रही थी । उसने शेखर को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर उससे जबरन दोहराने के लिए कहा।
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शेखर तीन चार बार के आग्रह के बाद आखिरकार बोल ही पड़ा । उसके जवाब देने पर विशाखा ने खुद भी तालिया बजायी और सभी बच्चो से भी ताली बजाने को बोला। फिर यह एक रूटीन बन गया। विशाखा हर सवाल का जवाब शेखर से लेती और फिर उसकी बहुत तारीफ करती। हर अच्छा उदाहरण के लिए शेखर का कारण दिया जाने लगा।
धीरे धीरे पुराना शेखर चुप्पी के कब्र को फाड़ कर बाहर आने लगा । अब विशाखा को सवाल के साथ जवाब बताने की जरुरत नहीं पढ़ती। शेखर रोज़ बिना गलती के जवाब देकर सबको हैरान करता और नए नए सवालों से भी ।
अब उसके बाल कुछ हद तक ठीक हो गए थे, कपड़े काफी साफ थे, जिसे उसने शायद खुद धोना शुरू कर दिया था। साल खत्म होते ही शेखर ने दूसरा स्थान यानि दूसरा वर्ग हासिल किया। विदाई समारोह में, सभी बच्चे विशाखा के लिए सुंदर उपहार लाए।
खूबसूरती से भरे इन उपहारों में एक पुराने अखबार में पैक किया गया उपहार भी था। बच्चे उसे देखकर हंसते लगे । किसी को यह जानने में देर नहीं लगी कि वह शेखर उपहार के रूप में लाया है ।
विशाखा ने उसे उपहारों के इस छोटे से पहाड़ से लपक कर बाहर निकाला। खोलकर देखा तो उसमे किसी महिला के इस्तमाल की हुई आधे इत्र की शीशी और एक हाथ में पहनने वाला बड़ा सा कड़ा था , जिसके ज्यादातर मोती गिर गए थे।
विशाखा ने चुपचाप अपने ऊपर यह इत्र छिड़क लिया और हाथ में कंगन पहन लिया। इस दृश्य को देखकर बच्चे हैरान रह गए। खुद शेखर भी , आखिरकार शेखर से रहा नहीं गया और विशाखा के पास खड़ा हो गया। और कुछ समय बाद, अटक अटक कर विशाखा से बोला “आज आप मेरी माँ की तरह लग रहे हो ।”
समय पर लगाकर उड़ने लगा । दिन, सप्ताह, महीने और वर्ष में बदलने में भला कहा देर लगती है ? लेकिन प्रत्येक वर्ष के अंत में, विशाखा को नियमित रूप से शेखर की तरफ से एक पत्र मिलता , जिसमें लिखा होता , “इस साल में कई नए शिक्षक से मिला लेकिन आप जैसा कोई नहीं।” फिर शेखर का स्कूल समाप्त हो गया और पत्रों का सिलसिला भी । कई साल बीत गए और विशाखा रिटायर हो गई। एक दिन उन्हें शेखर से एक पत्र मिला जिसमें लिखा था:
“इस महीने के अंत में मेरी शादी है और मैं आपके बिना आये शादी कि बात नहीं सोच सकता। एक और बात … मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिला हूं। पर आपके जैसा कोई नहीं । ….. …. डॉ शेखर
साथ ही विमान का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था। विशाखा खुद को रोक नहीं पाई। उसने अपने पति से अनुमति ली और वह दूसरे शहर के लिए रवाना हो गई। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पर पहुंची, तो उसे थोड़ी देर हो गई। उन्हें लगा कि समारोह पहले ही समाप्त हो गया होगा … लेकिन यह देखकर, उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी कि शहर के बड़े डॉ, व्यापारी और यहां तक कि वहां मौजूद सभी लोग थक गए थे और सोच रहे थे कि कौन आने वाला है।
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लेकिन शेखर समारोह में शादी के बजाय गेट कि तरफ टकटकी लगाए उनका इंतज़ार कर रहा था । जैसे ही विशाखा ने गेट से अंदर कदम रखा शेखर ने उनका हाथ पकड़ लिया जिसमे उन्होंने अब तक वह पुराना कंगन पहना हुआ था , और उन्हें सीधा मंच पर ले गया ।
माइक हाथ पकड़ में पकड़ कर उसने कुछ यु बोला , “दोस्तों, आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछते थे और मैं आपसे वादा करता था कि जल्द ही मैं उन्हें आप सभी से मिलवाऊंगा।
…… ..” यह मेरी माँ है “