तुंगनाथ मंदिर की मान्यता एवम् इतिहास

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उत्तराखंड में स्थित तुंगनाथ मंदिर (Tungnath mandir) महादेव का सबसे ज्यादा ऊचाई वाला धाम है । देवों के देव महादेव के पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर अन्य केदारों की तुलना विशेष महत्ता रखता है क्योंकि यह स्थान भगवान श्री राम से भी जुड़ा हुआ है।

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Tungnath Mandir Uttarakhand

कहते हैं यहां श्री रामचंद्र जी ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे। पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम से प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर की स्थापना कैसे हुई, यह बात लगभग किसी भी शिवभक्त से छिपी नहीं है ।

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव अपनों को मारने के बाद बहुत ही व्याकुल थे। उनका मन इस युद्ध से बहुत ही व्याकुल हो चूका था । इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास जी के पास गए।

Tungnath Mandir Uttarakhand Rudraprayag
Tungnath Mandir Uttarakhand Rudraprayag

महर्षि व्यास जी ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। अब उन्हें इस ब्रह्म हत्या के कोप से उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं।

पांडवों से नाराज़ थे महादेव शिव-

महर्षि व्यास जी की सलाह पर वे पांडव महादेव शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन महादेव  शिव महाभारत के युद्ध के चलते बहुत नाराज थे। इसलिए महादेव शिव ने  उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रुप धारण कर चुपचाप वहां से चले गए।

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लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह महादेव शिव ने अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोडे। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए।

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कहते हैं कि तुंगनाथ मंदिर (Tungnath mandir) में महादेव शिव के  ‘बाहु’ यानि  हाथ का हिस्सा स्थापित है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है।

पांडवों ने बनाया तुंगनाथ का मंदिर-

कहा जाता है कि पांडवों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। पंचकेदारों में यह मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर उत्तराखंड  के रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है और चोपता से तीन किलोमीटर दूर पर स्थित है।

Rudraprayag-Tungnath-mandir
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भगवान श्री राम से इसलिए जुड़ा है तुंगनाथ मंदिर-

पुराणों में कहा गया है कि श्री रामचंद्र शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे। कहते हैं कि लंकापति रावण का वध करने के बाद श्री रामचंद्र जी  ने तुंगगाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था। रामचंद्र जी ने यहां कुछ वक्त बिताया था।

बारह हजार (12,000) फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला पहुंचकर आप विराट हिमालय की सुदंर छटा का आनंद ले सकते हैं।

तुंगनाथ मंदिर मैप –

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