नैनीताल का इतिहास – History of Nainital in Hindi
नैनीताल जो सरोवर नगरी के नाम से भी जानी जाती है। यह देश विदेश का पसंदीता टूरिस्ट प्लेस है। यहां लोग घूमने फिरने के साथ-साथ अपनी छुट्टिया मनाने के लिए आते हैं.
यहां का मौसम सबसे ज्यादा गर्मियों के दौरान सैलानियों को भाता है। नैनीताल की खूबसूरती और ठंडो में यह यहा की बर्फ की वजह से सैलानी अपने आप यहां खींचे चले आते हैं. कहा जाता है कि नैनीताल में स्वर्ग जैसा अनुभव होता है. एक दौर था जब नैनीताल के आसपास 60 से अधिक झीलें थीं । इसे 60 तालों का शहर भी बुलाते हैं. लेकिन अब कुछ झीलें अपने अस्तित्व को खो चुकी हैं. और साथ ही जो झीलें हैं उनको भी बचाने की चुनौती खड़ी है.
नैनीताल का इतिहास- History of Nainital in Hindi
चलिए अब नैनीताल के इतिहास की तरफ चलते है। यहा का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है. कहा जाता है कि साल 1841 में पीटर बैरन ने नैनीताल की खोज करी थी। लेकिन पीटर बैरन से पहले वर्ष 1823 में ट्रेल यहां आये थे. लेकिन ट्रेल ने इसकी जानकारी किसी को नहीं दी, ताकि इसकी खूबसूरती को ग्रहण नहीं लगे.
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उसके बाद 1841 में एक अंग्रेज व्यपारी पीटर बैरन ने इस खूबसूरत से शहर को सबसे पहले दुनियां के सामने रखा. तब से नैनीताल शहर की खोज का श्रेय पीटर बैरन को दिया जाता है. कहते है कि जब पीटर बैरन नैनीताल पहुंचे थे तो नर सिंह थोकदार के पास यहा का पूरा स्वामित्व था. अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन ने नर सिंह थोकदार को झील के बीच लेजाकर उन्हें डराया व धमकाया, और इस शहर को अपने नाम पर कर लिया. अंग्रेजों ने 1842 के बाद नैनीताल को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई, साथ ही इसको छोटी विलायत का दर्जा भी दे दिया .
नैनीताल का पुराणों में उल्लेख:
यह नहीं है कि पीटर बैरन की खोज से पहले नैनीताल न हो. वर्ष 1841 में ये शहर दुनियां की नजरों में जरुर आया, लेकिन इससे पहले इस स्थान को पवित्र भूमि माना जाता था, जिसका उल्लेख स्कंद पुराण के मानस खंड़ में भी मिलता है.
इस स्थान को त्रि- ऋषि सरोवर भी कहा गया है. कहते है इस स्थान पर तीन ऋषि- ऋषि अत्री, ऋषि पुलस्थय और पुलाहा ऋषि ने तपस्या की थी. और जब उन्हें कहीं पानी नहीं मिला तो ऋषियों ने यहां पर एक बड़ा गड्ढा बनाया. इसके बाद उसमें मानसरोवर का जल भर दिया.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस झील में नहाने से आज भी मानसरोवर जैसा पुण्य मिलता है. साथ ही साथ यहां झील के किनारे बसा मां नयना देवी का मंदिर भी लोगों की आस्था का केन्द्र मुख्य है. 64 शक्तिपीठों में शामिल इस देवी मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान शिव जी आकाश मार्ग से अपनी पत्नी देवी सती का अधजला शव लेकर जा रहे थे तो इस दौरान मां सती की आंख यहां गिरी थी. तभी यहां मां नयना देवी की स्थापना की गई. और इस शहर का नाम भी नैनीताल रखा गया.
नैनीताल तक कैसे पहुंचे- How to Reach Nainital Uttarakhand
नैनीताल पहुंचे पर्सनल गाड़ी से
आप यहा खुद की गाड़ी से भी आ सकते है। नैनीताल दिल्ली से महज़ 320 किलोमीटर की दूरी और हल्द्वानी से सिर्फ 42 किलोमीटर की दूरी पर पर स्थित है।
नैनीताल पहुंचे हवाई जहाज से
सबसे निकटतम हवाई अड्डा नैनीताल का पंतनगर है। जिससे नैनीताल की दूरी सिर्फ 67 Km है।
नैनीताल पहुंचे ट्रेन से
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन नैनीताल का काठगोदाम है जिससे नैनीताल की दूरी 35 Km है।