बचपन की सुनहरी यादे GOLDEN MEMORIES OF CHILDHOOD
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जो अच्छा नहीं था वो आज याद जाता हैं इंसान फितरत का यह सबसे उन्दा नमूना है जो बचपन में बिलकुल अच्छा नहीं लगता था आज उसी पल की तलाश करता हैं चाहे किसी का कितना ही बुरा बचपन गुजरा हो. लेकिन ऐसा कोई नहीं जिसे
अपने बचपन की याद न सताती हो अगर आप किसी व्यक्ति से पूछे की आपके जीवन के सुनहरे दिन कौन से थे तो
वह यही कहेगा “बचपन” जी हां सभी को यही दिन मिठाई से भी ज्यादा मीठे और सुनहरे लगते हैं तो चलिए पढिए बचपन
के कुछ किस्सों के बारे में
बहुत याद आते है वो बचपन के दिन
मसरूफियत के दिन हैँ. स्कूलों की परीक्षाएँ सर पर हैं इसलिए सब व्यस्त है दो लम्हे की भी फुरसत नहीं लेकिन दोस्तों इस बिजी लाइफ से दो पल निकाल लीजिये. दुनिया को देखने समझने और मुस्कुराने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता अपने बचपन को खुल के जियो क्युकी ये वह समय है जो हमे जिंदगी भर याद आने वाला है
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बचपन स्कूल घर और दोस्तो से खुली चंद बाते और चीजे ऐसी है जो सबको एक समय पर जहर लगती हैं और बस
चंद सालों के फासले पर वही चीज़े हमे बहुत याद आती है … पेन्सिल थी तो स्याही वाले पेन की चाह थी और पेन्सिल छिलना नोक बनाना झंझट लगता था . आज जेल पेन तक आ गए तो पेन्सिल छिलने का और छिलने से आकृतिया बनाने
की बहुत याद आती हैं , स्कूल जाना तो शायद ही किसी को पसंद हो – वह भारी सा बस्ता जिसमे 8 कॉपी 8 किताबे और 1 रुफ्फ़ कॉपी साथ में टिफन कितना परेशान करता था
सोचते थे जब इस दौर से निकल जायेगे तब जिदगी के मजे आएंगे ,पर तब हमे क्या पता था यह टिफन दुबारा हमारी लाइफ में वापस नहीं आएगा
School Uniform तो हर सुबह याद जाती हैं – जिसे पहन पहन कर हम बोर हो जाते थे और सोचते थे की कब इस ड्रेस से हमे छूट मिले पर , जब आज अलमारी खोलकर खड़े होते है की क्या पहने , तो वही ड्रेस याद आती है ब्रोरींग सी यूनिफार्म जिसके रहते कुछ और सोचने की जरुरत ही नहीं थी.
दोपहर में कोई सोता है माँ??? सब ने कभी न कभी ऐसा कहा की होगा. और आज ?? दफ्तर में जब खाना खाने के बाद आखे मुदने लगती है तो कहते हैं दोपहर में सोना नसीब बालों को मिलता हैं
इतने लम्बे रास्ते से लेकर क्यों ले जारे हो पापा ? – तब हर जगह पहुंचने की जितनी जल्दी हुआ करती थी आज लॉन्ग
ड्राइव एक लग्जरी लगती हैं …कही न पहुंचना हो. बस यूंही घूमे अब मुमकिन कहां!
बचपन में अगर मां कहे की घर पर रुकना है आज तो याद है कितना बवाल मनाते थे घर पर बोर हो जायेगे क्या करना होता हैं घर में ?? आज घर पर रुक कर चंद आराम के पल बिताने को कोई नहीं कहता.
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अरे बाप रे कितनी खामोशी है वहा हम वहा नहीं जायेंगे यह फरमान किसी के घर या किसी जगह के बारे में जरूर जारी किया होगा. आज इतना शोर बरपा हैं चारो तरफ की उसी खामोशी के लिए तरसते हैं
तुम छोटे लग रहे हो … सुनना कैसा नागवार गुजरता था 13 – 14 साल की उम्र में लड़को को जैकेट ब्लेजर या लड़कियों का साडी पहनकर खुद को बडा साबित करना याद की होगा पुराने गाने जितने बोरिंग लगते थे आज उनकी मधुरता की पहचान होने लगी
आज जब यह गाना सुनता हु तो तब पता चलता है की असल में यह गाना बनाने का मकशद क्या रहा है
“ये दौलत भी ले लो , ये सोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कस्ती , वो बारिश का पानी “